विश्व के सबसे प्राचीन नगर काशी का वैभव धन और कुलीनता से परे औघड़ शिव की उन दिव्य तरंगों से है, जिसकी अनुभूति उत्तरवाहिनी गंगा के द्वार पर पहुंचकर ही होने लगती है। काशी की स्थापना के साथ ही इसके प्रथम शासक दिवोदास ने देवताओं को भी अपनी नगरी में घुसने से रोक दिया।
अपनी मानस भूमि में प्रवेश करने के लिए साक्षात शिव को भी भेष बदलकर काशी आना पड़ा। दिवोदास को जब अपनी भूल का अहसास हुआ तो उन्होंने काशी के द्वार सभी के लिए खोल दिए। ऐसा हर्ष का वातावरण बना कि देवताओं ने प्रसन्नता से अभिभूत हो काशी के 84 घाट, गलियों और कोनों को दीपों से जगमगा दिया।
यह दिन देव दीपावली के नाम से जाना गया। कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन देव और मनुष्य मिलकर यह आनन्द मना रहे होते हैं, तो स्वर्ग से अवतरित हुई गंगा भी इस उत्सव में शामिल हुई प्रतीत होती है। उत्सव के आल्हाद और दिव्य तरंगों से उत्प्लावित काशी नगरी के दुर्लभ दर्शन हर कोई करना चाहता है।
यही कारण है कि सैकड़ों सालों से हर साल देव दीपावली के दिन भारतवर्ष के हर कोने से साधक यहां एकत्रित होते हैं और देव और मनुष्यों के सम्मिलित उत्सव का आनन्द लेते हैं। घाट पर मनुष्य जहां दीपदान करते हैं, वहीं पवित्र गंगा मां के हृदय में उन दीपों का प्रकाश साथ ही झिलमिलाने लगता है।
आदि देव महादेव के काशी में लौटने और महाराज दिवोदास द्वारा सभी के काशी प्रवेश की अनुमति के अलावा महादेव द्वारा ही तीन राक्षसों के नाश कर त्रिपुरारी बनने जैसी कथाएं प्रचलित हैं, हर कहानी के अंत में देवता और इंसान मिलकर ही उत्सव मना रहे हैं।
इस दिव्य उत्सव का भागीदार कौन नहीं बनना चाहेगा। अगर आपने कभी देव दीपावली नहीं देखी है तो सहज मानवीय भौतिक चेतना के उत्कृष्ट आध्यात्मिक चेतना के एकीकार होने का दृश्य भी नहीं देखा है। अगर मौका मिले तो उन दुर्लभ क्षणों में काशी पहुंचने का प्रयास कीजिए, बाबा विश्वनाथ की कृपा रही तो आप भी साक्षी हो पाएंगे।
2020 Dev Deepawali Date is 30th Nov 2020
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