लाए कौन सन्देश नए घन !
अम्बर गर्वित,
हो आया नत…
चिर निस्पंदन ह्रदय में उसके
उमड़ी रे पुलकों के सावन !
लाए कौन सन्देश नए घन !..सुख दुःख से भर आया लघु उर ,
मोती से उजले जलकण से
छाये मेरे विस्मित लोचन
लाए कौन सन्देश नए घन…(महादेवी वर्मा )
सावन का महिना प्राकृतिक सौंदर्य का महीना है. बरसात की बूंदों के से प्रकृति खिल उठती है और हर तरफ हरियाली छ जाती है. सावन का आगमन होते ही सूखी धरती तृप्त हो जाती है. सावन अपने साथ केवल वर्षा की फुहारें लेकर नहीं आता बल्कि हरियाली, ताज़गी भरी हवाएं और मिट्टी की सौंधी खुशबू लेकर आता है, जो एक कलाकार के मन को नवीन सृजन करने के लिए प्रेरित भी करता है.
हिन्दू कैलेण्डर के अनुसार सावन या श्रावण मास अषाढ़ मास के बाद आता है जो अंग्रेजी महीने के जुलाई अगस्त के मध्य में आता है.
भारतीय परम्परा में सावन मात्र एक मास ही नहीं है बल्कि इस पूरे मास को उत्सव की तरह मानया जाता हैं. यूँ तो सावन का उत्सव सम्पूर्ण भारत मनाता है लेकिन आस्था, आध्यात्म और मौज मस्ती के शहर बनारस में सावन का आलम ही कुछ अलग होता है. इस जीवंत शहर में सावन की फुहारें नया रंग भर देती हैं. अषाढ़ पूर्णिमा से सावन पूर्णिमा तक मेले, त्यौहार, धार्मिक उत्सवों के बीच मानो सारा शहर हिंडोले में झूलता हो. काशी विश्वनाथ हो या काली, महामृत्युंजय हो या दुर्गा सभी सावन में झूला झूलते हैं. कहने का अर्थ ये है की सभी मंदिरों में झूलनोत्सव मनाया जाता है. जिसमे भगवान् कृष्ण का हरियाली श्रृंगार भी पमुख है. सावन के महीने में तुलसी मानस मंदिर की झांकी अत्यंत प्रसिद्ध है. जिसमे अनेको पौराणिक कथाओं को जीवंत करने का प्रयास किया गया है. जिसके कारण शहर में सावनी चहल पहल पुरे मास बनी रहती है.
महिलाएं प्रकृति से एकाकार होने के लिए हरी चूड़ियाँ पहन कर, हांथों में मेहंदी रचा कर, हरे वस्त्र या हरी साड़ी पहन कर पावस रितु का गीत कजरी और झूला गीत सामूहिक रूप से गाती हैं.
कजरी वर्षा रितु का लोक गीत है जो मुख्य रूप से पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में लोकप्रिय है. जिसमे बनारसी कजरी का अपना अलग ही सौंदर्य है. जिसमे प्रेम के संयोग और वियोग पक्ष रितु गीत कजरी के माध्यम से व्यक्त होते हैं. सावनी महोत्सव में जगह जगह शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रम रात्रि जागरण अलग ही अंदाज़ बयां करती है. जिसमे जाने माने कलाकार स्वतः प्रस्तुतियां देते हैं.
शिव की नगरी काशी सावन में शिवत्व के चरम पर होती है क्योंकि इस माह कावंड यात्रा होती है जिसमे भक्त जन केसरिया वस्त्र धारण कर दूर दूर से आते हैं और कावंड में जल भर के काशी विश्वनाथ मंदिर में भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग पर जलाभिशेख करते हैं. महिलाएं सावन के प्रत्येक सोमवार को व्रत रखती है और भगवान शिव का पूजन करती हैं. शुक्ल पक्ष के पंचमी तिथि को नाग पंचमी मनाई जाती है.
इस अवसर पर विभिन्न अखाड़ों में कहीं कुश्तीं दंगल तो कहीं बीन की धुन सुनाई देती है. इस दिन प्रायः हर घर में नाग देवता को दूध और लावा चढाते हैं. कहा जाता है की घर के बहार दूध रखने से नाग देवता नाग पंचमी के दिन दूध को ज़रूर ग्रहण करते हैं अतः सुख समृद्धि के लिए नाग देवता की पूजा की जाती है. शुक्ल पक्ष के तीसरे यानि तीज को हरियाली तीज बहुत ही धूम धाम से मनाई जाती है. मुख्य रूप से यह महिलाओं का त्यौहार है. जिसमे महिलाएं माँ पार्वतीऔर भगवान शिव की पूजा कर अपने पति की लम्बी आयु की कामना करती हैं.
पूरा सावन दुर्गाकुंड और सारनाथ का मेला लगा रहता है. जिसे देखने दूर ग्रामींड क्षेत्र और आसपास के लोग आते हैं..मेले में लगे हुए झूले और अन्य वस्तुओं से अपना मनोरंजन करते हैं.
सावन मास की पूर्णिमा को भाई बहिन का लोकप्रिय पर्व रक्षाबंधन होता है जिस दिन बहिन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती है और भाई अपनी बहिन को आजीवन उसकी रक्षा करने का वचन देता है.
वैसे तो सावन का महीना अपनी झोली में प्रेम, आस्था, एकता और जीवन में रस लेकर आता है पर जब ये रस बनारस के साथ घुलता है तब सबकुछ अनुपम और मनोरम लगता है. मौसम के साथ मन का हर कोना तरोताजा और उर्जावान हो जाता है. ऐ
सा अनोखा है बनारस और यहाँ का सावन!
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