भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों के अलावा नेपाल के काठमांडू में पशुपतिनाथ का मंदिर पूरे विश्व में भगवान शिव के लिए प्रसिद्ध है| कहा जाता है की भारत के ज्योतिर्लिंग भगवान शिव का शरीर है तो नेपाल का पशुपतिनाथ मंदिर उनका मुकुट है| जब भगवान्शिव का स्मरण आस्था भाव से किया जाता है तो काशी का वर्णन के बिना बात पूरी नही हो पाती, शिव के त्रिशूल पर बसी काशी में बारह ज्योतिर्लिंगों में शामिल काशी विश्वनाथ का मंदिर भी आता है|
काशी और काठमांडू का बहुत ही गहरा सम्बन्ध है दोनों ही सिस्टर सिटी के नाम से भी जाने जाते हैं| काशी मंदिरों के कारण सभी को आकर्षित करती है इन्ही मंदिरों में से एक मंदिर है पशुपतिनाथ जी का हाँ सही सुना आपने पशुपतिनाथ मंदिर! इसका लघु रूप काशी में भी है जिसे नेपाली मंदिर के नाम से जाना जाता है|
ललिता घाट पर स्थित यह मंदिर काशी के प्राचीनतम मंदिरों में से एक माना जाता है| यह मंदिर नेपाली वास्तु शैली में निर्मित भगवान्शिव को समर्पित है और धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्व रखता है|
नेपाल के राजा राणाबहादुर शाह नेपाल से निर्वासित होने के बाद (1800-1804) काशी आये उसी दौरान उन्होंने नेपाल की राजधानी काठमांडू स्थित पशुपतिनाथ मंदिर की रिप्लिका (प्रतिकृति) काशी में बनवाने का निर्णय लिया|
हालांकि मंदिर का निर्माण कार्य शुरू तो हुआ किन्तु इसे पूर्ण होने में लगभग ३० वर्ष लग गए उसी दौरान राजाराणाबहादुर शाह को नेपाल लौटना पड़ा जहाँ उनके सौतेले भाई शेरबहादुरशाह ने उनकी हत्या कर दी उनकी मृत्यु के पश्चात इस मंदिर को उनके पुत्र गिरवानयुद्ध विक्रमशाह ने समय सीमा के २० वर्ष बाद बनवाकर पूरा किया|
मंदिर से ही लगकर एक धर्मशाला भी है जहाँ संस्कृत ,आध्यात्म और वेद की शिक्षा ग्रहण करने वाले विद्यार्थी निवास करते है|
यह मंदिर हुबहू काठमांडू के पशुपतिनाथ मंदिर की छवि उकेरता है मंदिर के द्वार से लेकर दीवारों, पर की गई नक्काशी बहुत ही खूबसूरत है जो लकड़ियों पर उकेरी गई हैं| उन पर कामुक मानवाकृतियां खजुराहों के मंदिरों की तरह बनाई गई हैं जिसके कारण इस मंदिर को काठवाला मंदिर और मिनी खजुराहों भी कहा जाता है|
टेराकोटा, लकड़ी और पत्थरों से बने इस मंदिर की आभा बेहद खूबसूरत है| यह मंदिर पूरी तरह से नेपाली वास्तु शैली में निर्मित है और इस मंदिर को न केवल नेपाल के कारीगरों द्वारा बनाया गया बल्कि इसकी निर्माण सामाग्री भी नेपाल से ही लायी गई थी| शीशम और शेखुआ की लकड़ी से बना यह मंदिर दीमक्मुक्त है जो आज भी सुरक्षित है|
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