काशी रहस्य जो की ब्रह्म्वैवर्त्य पुराण के अंतर्गत आता है ~ जिसमे बताया गया है कि यह पंचक्रोश का आकार भगवान् शिव का ज्योतिर्लिंग है , जिसकी पवित्र प्रदक्षिणा की परम्परा अत्यंत प्राचीन है!
कथाएं : ऐसा माना जाता है की त्रेता युग में भगवान राम ने पत्नी सीता और भाइयों के साथ अपने पिता दशरथ को श्रवण कुमार के श्राप से मुक्ति दिलाने के लिए पहली बार यह पवित्र परिक्रमा की थी और दूसरी बार जब भगवान राम ने रावण का संहार किया तब ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति के लिए सीता ओर लक्ष्मण के साथ पुनः पंचक्रोशी की प्रदक्षिणा की| यह भी माना जाता है कि द्वापर युग में अज्ञातवास के समय पाण्डवों ने द्रौपदी के साथ यह यात्रा कि|
यात्रा का समय : वैसे तो यह यात्रा हिन्दू तिथि पत्र के अनुसार फाल्गुन, वैशाख और चैत्र मास में कि जा सकती है किन्तु शिवरात्रि के दिन एकदिवसीय यात्रा का विधान प्रचलन में है| इसकी प्रमुख यात्रा का विधान प्रत्येक तीसरे वर्ष आने वाले पुरुषोत्तम मास अथवा अधिमास (जिसे मलमास भी कहते है) में पांच दिनों में पूर्ण कि जाती है| पंचक्रोशी यात्रा के लिए पुरुषोत्तम मास को अत्यंत शुभ माना जाता है| क्योंकि इस मास में कोई भी संक्रांति नहीं आती|
परिक्रमा कि दूरी और विश्राम स्थल (पड़ाव ):
यह यात्रा 25 कोष में पूरी कि जाती है| इस यात्रा में कुल 5 विश्राम स्थल अथवा पड़ाव हैं|
ये पांचों पड़ाव महत्वपूर्ण स्थल (मंदिर) हैं, पंचक्रोशी यात्रा में दक्षिणअवर्त रूप से परिक्रमा की जाती है| परिक्रमा करते समय सारे मंदिर दाहिने तरफ मिलते हैं और धर्मशालाएं बायीं तरफ क्योंकि धर्मशालाओं में जो यात्री निवास करते हैं वे अपना भोजन स्वयं बनाते हैं, और नित्य कर्म के लिए भी जाते हैं, इसलिए धर्मशालाए बायीं ओर ही बनाई गई हैं| इन धर्मशालाओं में लगभग 25000 यात्री निवास कर सकते हैं| प्रत्येक पड़ाव के पास एक जलकुंड या जल श्रोत भी है| जिसमे यात्री स्नान कर पूजन दर्शन करते हैं|
पंचक्रोशी यात्रा के दौरान 108 शिवलिंग, 56 मंदिर, 11 विनयक, 10 अन्य शिव मंदिर, 10 देवी, 4 विष्णु, 2 भैरव, और 14 अन्य देव जिनका यात्रा के दौरान दर्शन पूजन का विधान है|
इस यात्रा को प्रारंभ करने के एक दिन पूर्व भक्त जन गंगा स्नान कर काशी विशेश्वर के दर्शन पूजन करते हैं और कशी विश्वेश्वर के मुक्ति मंडप में यात्रा का संकल्प लेकर ज्ञानवापी में स्नान या जल का मार्जन (छिडकते) है|
जिस दिन यात्रा प्रारंभ करनी होती है उस दिन प्रातः काल गंगा स्नानं अन्नपूर्णा दर्शन और भुवनेश्वरी देवी के दर्शन श्रद्धालु करते है ,उसके बाद मणिकर्णिका कुंड से इस यात्रा प्रारंभ करते है| मणिकर्णिका कुंड मणिकर्णिका घाट के पास स्थित एक जलाशय है उपाख्यानों में इस कुंड को शिव शक्ति से जोड़ते हुए महत्वपूर्ण माना गया है| भक्त इस कुंड में डुबकी लगाकर अपनी हथेली/ अंजुरी में जल लेकर यात्रा करने का संकल्प करते है| साथ ही किसी मनोकामना की भी पूर्ति का वचन भी लेते है| मनोकामना पूर्ति के बाद पुनःदर्शन करने का निश्चय भी कर लेते है|
मणिकर्णिका से भक्तजन अस्सी आकर पंचक्रोशी मार्ग पर आ जाते है, पंचकोशी यात्रा का यह मार्ग तीर्थ यात्रा का बहुत ही प्राचीन मार्ग है| इस मार्ग पर अनेकों सूचना पट देखने को मिलते है जो पुरे रास्ते मार्गदर्शन करते हुए चलते हैं और पड़ावों के बार में सूचित भी करते रहते हैं|
पंचक्रोशी मार्ग से श्रद्धालुओं का जत्था पांव में बिना चप्पल पहने सर पर अपनी खाद्य सामग्री और पूजन सामग्री के बोझे को लादे निकल पड़ता है अपने पहले पड़ाव कर्दमेश्वर की ओर…कर्दमेश्वर मंदिर ऐतिहासिक और धार्मिक दोनों ही दृष्टियों से महत्वपूर्ण है| ऐसी मान्यता है की कर्दम ऋषि ने इस मंदिर के शिवलिंग में प्राण प्रतिष्ठा की और कालांतर में चंदेल राजाओं ने इस मंदिर का निर्माण करवाया जो वास्तुकला की दृष्टि से भी महत्व रखता है| यहाँ पर स्थित बिंदु सरोवर में स्नान कर कर्दमेश्वर महादेव का पूजन कर एक रात्रि यही विश्राम करते हैं.और अगले दिन सुबह ही निकल पड़ते हैं अपने दुसरे पड़ाव भीम्चंडी की ओर, भीमचंडी मंदिर शिव चंदिकेश्वर के नाम से भी जाना जाता है| यह मंदिर गन्धर्व सागर कुंड के किनारे स्थित है| इस मंदिर में शिवलिंग के पास पांडवों की छोटी छोटी मूर्तियाँ हैं| इस पड़ाव का नामकरण उस स्थल पर स्थित भीमचंडी के नाम पर हुआ|
इसके बाद श्रद्धालु अगले दिन प्रातः अपने तीसरे पड़ाव की ओर बढ़ते हैं जिसका नाम है रामेश्वर, यह मंदिर वरुणा नदी के किनारे स्थित है| मान्यता है की भगवान राम ने स्वयं अपनी पंचकोशी यात्रा के दौरान इस मंदिर के शिवलिंग की स्थापना की थी| जिसके कारण इसे रामेश्वर के नाम से जाना जाता है| इस मंदिर के पास लक्ष्मनेश्वर, भरतेश्वर और शत्रुग्नेश्वर मंदिर हैं जो लक्ष्मण भरत और शत्रुघ्न से सम्बंधित है| इस स्थान पर भी श्रद्धालु एक दिन ठहरते हैं और अपनी आस्था रामेश्श्वर महादेव को समर्पित करते है|
यात्रियों का समूह मन में श्रद्धा का भाव लिए रास्तों में गीत गाते चलते सुस्ताते धीरे धीरे अपने चौथे पड़ाव शिवपुर की और निकलता हैं| मार्ग पर कुछ श्रद्धालुओं का समूह ईंटो के टुकड़ों से घर की प्रतिकृति (घरौंदा) बनाते दिख जाते है यह प्रतीकात्मक रूप में उनके अपना घर बनवाने की कामना होती है| जिसके माध्यम से वे ईश्वर से घर निर्माण के सामर्थ्य का आशीर्वाद मांगते हैं| और ऐसा मनना भी है की ये मनोकामनाएं पूर्ण भी होती हैं|
चौथे पड़ाव शिवपुर का मंदिर अत्यंत साधारण है| यहाँ पर अवरोही क्रम में 5 शिवलिंग है जिसे पांडवों ने स्थापित किया है| इस मंदिर के किनारे स्थित कुंड का नाम द्रौपदी कुंड है|
पांचवे दिन यानि अंतिम दिन पांचवा पड़ाव होता है जिसका नाम है कपिलधारा| कपिलधारा में कपिलेश्वर महादेव का विशाल मंदिर है| जो कर्दम ऋषि के पुत्र कपिल मुनि को समर्पित है| जहाँ श्रद्धालु दर्शन पूजन करते हैं..और यहाँ पूर्वजों को श्राद्ध आर्पित करने की महत्ता है| कपिलधारा में यात्रियों हेतु, धर्मशाला, सुलभ प्रसाधन, जल कुंड और विद्युत् कि भी व्यवस्था है|
कपिलधारा के आगे वरुणा और गंगा नदी के संगम तीर्थ आदि केशव घाट के निकट जौ विनायक का मंदिर है..यहाँ से श्रद्धालु जौ का पौधा लेकर या जौ लेकर गंगा में बोते हैं| गंगा में जौ बोने का अर्थ एक बहुत ही दुर्लभ कार्य के पूर्ण होने से है| यहाँ से श्रद्धालु गंगा के किनारे किनारे पैदल या नाव से चलकर मणिकर्णिका घाट पहुचते है जहाँ पर संकल्प पूर्ण करते हुए श्री काशी विश्वनाथ मंदिर, अन्नपूर्णा, गणेश एवं कालभैरव का दर्शन कर पंचक्रोशी परिक्रमा संपन्न करते हैं| इस अंतर्गृही पंचकोशी यात्रा के कारण उन छोटे छोटे व्यापारियों को भी लाभ मिल पाता है जिन तक जनता प्रत्येक समय नहीं पहुच पाती| पंचक्रोशी मार्ग के व्यापारियों के लिए भी यह महत्वपूर्ण समय है|
पंचक्रोशी यात्रा मात्र एक यात्रा ही नहीं बल्कि यह सद्कर्म के मार्ग पर चलने का सन्देश है, जिसमे छोटे से छोटा पाप न करने का पाठ है और अपने द्वारा किये गए छोटे से भी पाप या गलती का प्रायश्चित भी है| जिसके लिए लोग अपने शरीर को कष्ट पहुंचा के, नंगे पांव २५ कोस यात्रा करते हैं| इस यात्रा को करने के लिए अक्सर वे समूह में चलते हैं, जिसमे वे एक दुसरे के सुख दुःख के भी साथी होते है| किसी के मर्म का बहुत गहराई से अनुभव कराती है यह यात्रा| ये 25 कोस मात्र आस्था के ही नहीं है बल्कि प्रेम के भी 25 कोस है|
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