वाराणसी। लोलार्क पष्ठी (ललई छठ) आगामी 24 अगस्त को आयोजित होने वाला मेला विश्वव्यापी महामारी कोरोना के दृष्टिगत इस वर्ष आयोजित नहीं किया जाएगा।
पुलिस-प्रशासन और मेला कमेटी के मध्य वार्ता के पश्चात मेला कमेटी द्वारा लिखित रूप से अवगत कराया गया है कि इस वर्ष लोलार्क कुण्ड पर मेला आयोजित नहीं किया जाएगा

वैसे तो काशी का हर नदी, कुंड, तालाब को ही जल तीर्थ की मान्यता प्राप्त है। इनका हर गोता पूण्यफलदायी है। लेकिन एक खास दिन किसी का लोलार्क कुंड में श्रद्धालुओं की डुबकी सिर्फ किसी पूण्य की ही डुबकी नहीं बल्कि आस्था और विश्वास की डुबकी है। हजारों दंपत्ति यहाँ पुत्र प्राप्ति की कामना का भाव लेकर इस कुंड में स्नान करते हैं और स्नान करने के पश्चात जो वश्त्र धारण किये होते हैं, उसे वहीँ छोड़  देते हैं, साथ ही किसी एक सब्जी का त्याग हमेशा के लिए कर देते हैं|

Lolark Kund Front View
Lolark Kund Front View

मान्यता यह है कि बच्चे प्राप्ति की कामना से स्नान करने वालो को भगवान्सूर्य के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए किसी एक सब्जी का त्याग कर देना चाहिए| उसी मान्यता का पालन करते हुए बहुत से श्रद्धालू स्नान के उपरांत लौकी या कुम्ह्डों जैसी सब्जियां भी कुंड में प्रवाहित करते हैं|

जाहिर है जब लोलार्क षष्ठी को यहां कामनाओं की गागर लेकर आपार जन सागर उमडता है तो यह पता चलता है कि इनमें हजारों ऐसे हैं जो कामना पूर्ण होने के बाद आभार की डुबकी यहां लेने आते  हैं।काशी के कई परिवारो को अब नवप्रवेशी बधुओं के लिए यह एक पारंपरिक संस्कार जैसा है।

Lolark Kund
Lolark Kund

आस्था की यह कहानी 18 वीं  सदी की एक घटना से जुडती है। जिसमें पश्चिम बंगाल के कूचविहार स्टेट के नरेश को इस कुंड के स्नान से चर्मरोग से निरोग हुये और वह घटना आस्था की एक संबल बन गई।

ऐसा भी माना जाता है कि सदियों पहले यहाँ एक विशाल उल्कापिंड गिरा था| उल्कापिंड से ही कुंड अस्तित्व में आया, तब से लोगों को भ्रम हुआ था कि यहाँ सूर्य का टुकड़ा गिरा है|

Pilgrims at Night waiting for holy bath
Pilgrims at Night waiting for holy bath

काशीखंड ,शिव्महपुराण ,विष्णुपुराण कई सनातनी शाश्त्रों और धर्मग्रंथों में लोलार्ककुंड का उल्लेख मिलता है| कालांतर में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने इस कुंड का सुन्दरीकरण कराया| लोलार्क कुंड की रचना इस तांत्रिक विधि से की गई है कि भाद्रपद शुक्ल षष्ठी  को सूर्य की किरणें अत्यंत प्रभावी बन जाती है और इसीलिए जो यहां एक विधान में फल में सूईयां चुभोईं जाती है वह सूर्य की रश्मियों का प्रतीक है।

Mundan Sanskar
Mundan Sanskar

बताते चले कि दुनियां के प्राचीन मोहल्लों में शुमार गोस्वामी तुलसीदास की तपोस्थली वाराणसी के भदैनी मोहल्ला कभी क्राउंन प्रिंसों का इलाका रहा। इस मोहल्ले में काशीनरेश, राजाविजयानगरम्  ,महाराजसरगुजा, महाराजभिंनगा, महाराजधौमानगंज और कूचविहार नरेश यहां निवास करते थे।

लोलार्क कुंड सूर्य का कुंड है। मान्यता यह भी है कि सूर्य के रथ का पहिया कभी यही गिरा था जो कुंड के रुप में विख्यात हुआ।

During Lolark Chhath
During Lolark Chhath

कलांतर में यह लोकमान्यता हो गया कि जिसको संतान की उत्पत्ति न हो वह सपत्नी कइस कुंड में स्नान कर लेता है तो उसको संतानोत्पती का लाभ मिलता है।यही कारण है कि प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल पक्ष के षष्ठी

Lolark chhat (लोलार्क कुंड स्नान ) 24 August 2020 | Bhadrapada Shukla Paksha, Shashthi 2077 Pramathi, Vikrama Samvata, Varanasi, India

को देश के विभिन्न हिस्सों से आने वाले लाखो श्रद्धालु यहां आस्था की डुबकी लगाकर पूण्य कमाकर अपने गंतव्य को रवाना होते हैं।

Direction

Varanasi Videos

View all posts

Add comment