काशी भारत की प्राचीनतम और सांस्कृतिक नगरी ,यूँ तो काशी में प्रत्येक देवता की पूजा होती है लेकिन यहाँ के नगरवासियों के प्रिय आराध्य देव भगवान् भोलेनाथ हैं | जिनके नाम का जप यहाँ के लोग एक दुसरे से मिलते जुलते या अपनी किसी भी खुशी को व्यक्त करने के साथ ही हर हर महादेव के जयघोष के रूप में कर लेते हैं| यहाँ पर लोक में प्रचलित उक्ति के अनुसार यहाँ के कंकर कंकर में शकर का वास है, कहने का आशय यह हो सकता है की यहाँ शिव् मंदिरों की बाहुल्यता है| वाराणसी के दक्षिणी छोर पर स्थित कन्दवा पोखरे के किनारे बसा  कर्दमेश्वर महादेव मंदिर काशी के प्राचीन शिव मंदिरों में बहुत ही महत्वपूर्ण है| जिसका उल्लेख काशी खंड  और पंचक्रोशी महात्म्य में मिलता है | काशी की धार्मिक और  महत्वपूर्ण पंचक्रोशी यात्रा का यह प्रथम विश्रामस्थल भी है | जहाँ शर्द्धालू  अपनी पंचक्रोशी यात्रा के दौरान एक दिन विश्राम करते हैं…

Kardmeshwar Temple
Kardmeshwar Temple

एक कथा के अनुसार एक दिन  प्रजापति कर्दम ऋषि शिव की पूजा में ध्यानमग्न थे तब उनका पुत्र कर्दमी  अपने मित्रों के साथ तालाब में स्नान करने गया उसी समय घड़ियाल उनके पुत्र  को खींच ले गया जिससे कर्दमी के मित्र भयभीत होकर कर्दम ऋषि के पास गए और उनसे यह बात बताई लेकिन कर्दम ऋषि इस बात से प्रभावित नहीं हुए वे ध्यानमग्न ही रहे| ध्यानावस्था में ही वे संसार की सारी गतिविधियों को देख सकते थे| उन्होंने देखा की उनका पुत्र जल्देवी द्वारा सुरक्षित रूप से बचाकर समुद्र को सौप दिया गया है, समुद्र ने उसे आभूषनो से सुसज्जित कर शिवगणों को सौंप दिया जिसे शिवगणों ने शिव की आज्ञा से पुनः यथास्थान पंहुचा दिया| प्रजापति कर्दम ने जब अपनी आँखें खोली तो उन्होंने अपने पुत्र को अपने सम्मुख पाया, उसके पश्चात कर्दम ऋषि के पुत्र पिता की आज्ञा से वाराणसी चले आये, कर्दमी ने एक शिवलिंग स्थापित कर कई वर्षों तक तपस्या की जिससे भगवान् शिव ने प्रसन्न होकर प्रत्येक स्तोत्र का स्वामी घोषित किया…लोक में ऐसी कथा भी प्रचलित है की  कर्दम ऋषि ने यहाँ कई वर्षीं तक तपस्या की जिससे भगवान् विष्णु ने प्रसन्न होकर वरदान मांगने को कहा कर्दम ऋषि ने पुत्र रत्न की इच्छा प्रकट की उसके उपरांत कर्दम ऋषि ने कर्दम कूप बनवाया जिसमे अपनी पत्नी देहुती के साथ स्नान किया किंवदंतियों के अनुसार स्नान के बाद पति-पत्नी युवा हो गए जिससे उनके पुत्र कपिलमुनि का जन्म हुआ|

Shivalinga in the Temple
Shivalinga in the Temple

ऐतिहासिक दृष्टि से यह मंदिर लगभग  12वीं शताब्दी में निर्मित हुआ जिसका निर्माण गढ़वाल राजाओं ने किया| काशी खंड और तीर्थ विवेचन खंड भी यह दर्शाते हैं की इस मंदिर का वरुनेश लिंग गढ़वाल काल का है| नागर शैली में निर्मित यह मंदिर पंचरथ प्रकार का है| इसका तल की योजना में चौकोर गर्भगृह, अंतरा और अर्ध्मंड़प है, मंदिर के ऊपरी भाग में नक्काशीदार कंगूरा और आमलक सहित सजावटी शिखर है| मंदिर की भित्तियों बार उत्कीर्ण मूर्तियों में वामन, अर्धनारीश्वर, ब्रह्मा और विष्णू आदि कई देवी देवता हैं| इस मंदिर के किनारे ही कंदवा पोखरा (तालाब ) है | मंदिर के निकट ही विरूपाक्ष की मूर्ती स्थापित है जी के समीप कर्दम कूप भी है | मंदिर के बायीं और कुछ दूरी पर पंचक्रोशी यात्रियों के लिए धर्मशाला भी है जिसमे पंचक्रोशी के यात्री विश्राम करते हैं|

Ardhnarshwar and Balram Revati
Ardhnarshwar and Balram Revati

वर्तमान में इस मंदिर की देखरेख का जिम्मा उत्तर प्रदेश राज्य पुरातत्व विभाग क्षेत्रीय पुरातत्व इकाई वाराणसी को दिया गयाजिससे इसकी उचित देखभाल हो पा रही है|  कर्दमेश्वर महादेव मंदिर काशी के प्राचीन और प्रमुख मंदिरों में से एक है जो आज भी अस्तित्व में है| जिसका वर्णन पुराणों और प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में है..इसके अलावा पंचक्रोशी यात्रा का पहला पड़ाव होने के कालं इस मंदिर का महात्म्य और भी बढ़ जाता है| इस तरह से कर्दमेश्वर महादेव मंदिर ऐतिहासिक और धार्मिक दोनों ही दृष्टियों से महत्वपूर्ण है|

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